कोन है महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ? आए जानेंगे उनकी बारे मैं।

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पूज्य आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज सनातन संस्कृति के आधुनिक ध्वज वाहक हैं। देश-दुनिया में उनके करोड़ों अनुयायी हैं और आचार्य के रूप में लाखों सनातनी साधु-संतों का नेतृत्व कर रहे हैं। भारतीय सनातन संस्कृति के उत्थान और देश विदेश में संस्कृति की अलख जगाए रखने के लिए वह निरंतर प्रयासरत हैं। अपने काम की वजह से उन्हें काफी सम्मान मिलता है और उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश के दिग्गज राजनीतिज्ञ और गणमान्य जन भी उन्हें धर्म नायक के रूप में सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। महज 6 साल की उम्र से उन्होंने खुद को सनातन धर्म के लिए समर्पित कर दिया। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम से दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर और दक्षिण काली पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी संन्यास परंपरा में शामिल हो गए। पिछले साल 14 जनवरी को आचार्य महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक होने के बाद वह सनातन धर्म के नेतृत्वकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं। जगजीतपुर स्थित आद्य शक्ति महाकाली आश्रम में उनका पहला सन्यासी दिवस भी मनाया गया था,जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु जुटे थे। आचार्य महामंडलेश्वर के पद पर आसीन होने के बाद कैलाशानंद गिरि जी महाराज की जिम्मेदारी भी पहले से ज्यादा बढ़ चुकी है। चूंकि निरंजनी अखाड़े के सभी नागा संन्यासी व संतों को आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में कैलाशानंद गिरि दीक्षा दे रहे हैं। इष्ट देव भगवान कार्तिकय के बाद अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर सबसे बड़े होते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर बनने वाले काफी विद्वान होते हैं। आचार्य का मानना है कि विद्वान व्यक्ति वही होता है, जिसमें सेवा का भाव हो। अग्नि अखाड़े के बाद कैलाशानंद गिरि का जीवन श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े के लिए समर्पित हो चुका है। श्री दक्षिण काली पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद द्वारा संकलित अति दुर्लभ स्त्रोत्र संग्रह शक्तिस्तवनम का विमोचन भी हो चुका है।

Story By:-Satish Kumar

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